प्रथम विश्वयुद्द में 46 योद्दा गंवाने वाला गांव, आज भी हर घर में मिलेगा फौजी

भारत के ज्यादातर लोगों भारतीय सेना में जाकर अपने देश की सेवा करना चाहते हैं। कुछ लोगों को मौका मिलता है तो कुछ लोगों को मौका नहीं मिल पाता है। कछ लोग लेकिन अपनी मेहनत और लगन से एक मिसाल ही कायम कर देते हैं। एक ऐसा ही गांव महाराष्ट्र में है जिसके हर घर से एक आदमी कम से कम आर्मी में सेवा दे रहा है। इस अनोखे गांव को और भारतीय सेना में उसके योगदान से खुश हो कर भारतीय सेना की तरफ से भी अब उसे तोफा दिया गया है।

यह गांव 60 सालों से सेना में है

महाराष्ट्र के सतारा में एक गांव है गांव को मिलिट्री आपशिंगे के नाम से जाना जाता है। इस गांव में करबी 350 परिवार हैं। इस गांव में करीब 3000 लोग हैं। इस गांव के लोगों का आर्मी में 1962 की जंग से लेकर अब तक एक इतिहास रहा है। यह गांव सेना में सशस्त्र में बलों में अपने योगदान देने को लेकर आपशिंग मिलट्री के नाम से जाना जाता है। इस गांव के लोग भारतीय सेना के दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिस कमांडिंग- इन चीफ लेफिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह ने सोमवार को महाराष्ट्र के सतारा जिले में आपशिंगे ‘ मिलिट्री गांव’ में एक लर्निंग सेटर और जिम का उदघाटन किया।

प्रथम विशवयुद्द में सबसे ज्यादा हुए शहीद

सेना में अपनी कुर्बानी देने का होंसला बहुत पहले से है। इस गांव के बहुत लोग अंग्रेजो की सेना में भी थे। उस जमाने में जब अंग्रेज प्रथम विश्वयुद्द में लड रहे थे। उस समय इस अकेले गांव से 46 जवान शहीद हुए थे। उन लोगों की शहदात को देखते हुए ही गांव का नाम आपशिंगे मिलट्री रखा गया था। इस गांव के लोग दूसरे विश्वयुद्ध में लड़े थे। उस युद्ध में चार जवान इस गांव के शहीद हुए थे।

कुर्बान हुए 1962 और 1971 में

इस गांव के लोगों को एक ही सपना होता है कि अपने पुर्खों की तरह माटी की खातिर मर मिट जाना। एक डॉक्टर का बेटा जैसे डॉक्टर बनना चाहता है। एक खिलाड़ी का बेटा जैसे खिलाड़ी बनना चाहता है। इस गांव में भी यही रिवाज है। एक फौजी का बेटा हर हाल में फौजी बनना चाहता है। इन लोगों ने इस परम्परा को निभाया है। आर्मी रिकार्ड बताते हैं कि इस गांव के लोगों ने 1962 में चीन के खिलाफ भी शहादत दी थी। उसके बाद 1971 में भी शहादत थी। हर युद्ध में इस गांव का कोई ना कोई सेनिक शामिल रहा है।

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