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कांट्रेक्ट वर्कर
आज के समय में भारत में बहुत से लोग कांट्रेक्ट बेस पर काम करते हैं। ऐसे में कुछ लोग तो यहां सरवैब कर लेते हैं और कुछ लोगों का शोषण होता है। ऐसे में लोगों को इसके अधिकारों के बारे में जानना आज के समय में बहुत जरूरी है।
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आखिर कौन है कांट्रेक्ट वर्कर
कांट्रेक्ट वर्कर वह होते हैं जिनसे कंपनी कोई भी काम करवा सकती है। इनकी नियुक्ति कांट्रेक्ट के जरिए ही होती हैं। इसके साथ ही इन्हें पेमेंट भी अलग तरीके से मिलता हैं।
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आखिर क्या है कांट्रेक्ट वर्कर के लिए कानून
भारत के संविधान में रेगुलेशन एंड एबॉल्युशन एक्ट बना हुआ है। इस एक्ट का मकसद काम को बेहतर माहौल पेश करना हैं।
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कानून में है रजिस्ट्रेशन
कांट्रेक्ट लेबर एक्ट में यह जिक्र है कि कंपनियां एक साल में 20 से भी ज्यादा रजिस्ट्रेशन करवा सकती है।
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ऐसी कंपनियों में नही होता है लागू
यह एक्ट ऐसी कंपनियों पर नहीं लागू होता है जो केवल 15 दिन के लिए मजदूरों को हायर करती हैं। ऐसे में इन कंपनियों को पंजीकरण के रूप में अस्थाई पंजीकरण दिया जाता है।
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रजिस्ट्रेशन नहीं करवाने पर यह है नुकसान
अगर आप कोई कंपनी चला रहे हैं और कांट्रेक्ट लेबर के तहत पंजीकरण नहीं करवाया है तो यह करवाना जरूरी है। ऐसे में आप बिना पंजीकरण के किसी भी व्यक्ति को रोजगार नही दे सकते हैं।
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कांट्रेक्टर करता है भुगतान
अगर इनके भुगतान की हम बात करें तो वर्कर ही इनका कांट्रेक्टर ही भुगतान करता है।
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यह मिलती हैं सुविधाएं
लेबर एक्ट के तहत कांट्रेक्ट वर्कर को कंपनी 100 से ज्यादा लेबर रख सकती है। वहीं वर्कर को 6 महीने या फिर उससे ज्यादा का काम देना होगा। इनके लिए रेस्ट रूम और खाने - पीने की व्यवस्था होनी चाहिए।