General Knowledge: हींग भारतीयों की किचन का एक ऐसा मसाला है। जो न हो तो भारतीय रसोई में अधूरापन पैदा कर दे। दाल हो या सब्जी, रायता हो या परांठा । एक छोटी सी हींग की डिबिया मसालदानी में कहीं दबी होती है। जो किसी गर्म तेल या घी में डाला जाए तो पड़ोसी के घर तक को महका दे। कैसा भी भोजन हो पाचन तंत्र के लिए औषधीय बना दे। इतनी उपयोगिता जानकर हर किसी के मन मे सहज रूप से कई सवाल एक साथ कौंधने लगते हैं। आखिर यह पैदा कैसे होती है।हमारी रसोई तक आती कहां से है। तो आइए जानते हैं इस हींग की कहानी …
अफगानिस्तान से आती है
हींग यूँ तो भारतीय मसालों का अहम हिस्सा है। लेकिन कच्चे माल के तौर पर मुस्लिम बहुल देशों अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान से आती है। जब अंग्रेजों को इसके बारे में पता चला , तो इसकी तीखी महक की वजह से इसे शैतान का गोबर बता दिया। भारत में इसका उत्पादन नहीं होता है। बल्कि इसकी प्रोसेसिंग होकर खाने लायक तैयार भारत में ही होती है। इसे जब आप कच्चे माल के तौर पर देखेंगे। तो पाएंगे कि यह एक हल्के गुलाबीपन से युक्त फेविकॉल जैसा गाढ़ा मटमैला सफेद दूध है। इसकी महक इतनी तीखी है कि कुछ देर भी न खड़े हो सको। बता दें पूरी दुनिया में हींग का गाढ़ा दूध सिर्फ दवाई के रूप में उपयोग हो रहा है।
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कैसे बनाई जाती है हींग
हींग का जो गाढ़ा दूध होता है । वह कच्चे माल के रूप में अभी तक सबसे अधिक अफगानिस्तान से भारत आता था। लेकिन तालिबानी शासन आने के बाद भारत अब इसे उज्बेकिस्तान से अधिक मात्रा में आयात कर रहा है। भारत मे भी कसौली में उगाई जाने लगी है, किन्तु कम क्षमता होने के कारण हम विदेशों पर निर्भर हैं। हींग का जो गाढ़ा दूध आता है, उसमें एक निश्चित अनुपात में मैदा और गोंद मिलाकर उसे खाने लायक तैयार किया जाता है। इसके बाद इसे एक महीने धूप में सुखाते हैं। ड्रायर में नहीं। अन्यथा इसकी महक चली जाएगी। सूखने के बाद इसका पाउडर तैयार करते हैं। यूपी,दिल्ली, पंजाब तथा राजस्थान के कुछ शहरों में इनकी प्रोसेसिंग की जाती है। अफगानिस्तान की हिंदुकुश पहाड़ियों में कच्ची हींग का दूध फेरुला ऐसाफोएटीडा वैज्ञानिक नाम वाले पौधे से निकाल इकट्ठा करते हैं। ईरान के भी कुछ ठंडे क्षेत्रों में उत्पादन किया जाता है। पहले कच्ची हींग को बकरे की खाल में पैक करके भारत भेजा जाता था। लेकिन अब ये गाढ़ा दूध आधुनिक कन्टेनर में पॉलीथिन में पैक कर आता है।
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