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Home जनरल नॉलेज

सिंधु घाटी सभ्यता के आबाद होने से लेकर बर्बाद होने तक की पूरी कहानी?

DNP EDUCATION DESK by DNP EDUCATION DESK
May 1, 2023
in जनरल नॉलेज, लेटेस्ट न्यूज़
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Indus Valley Civilization: अगर मैं कहूं कि एक सिक्के जमा करने वाले आदमी ने अपने इसी शोक के चलते पांच हजार पुरानी सिंधु सभ्यता को कोज निकाला, तो आपको यकीन आयेगा? लेकिन यह सच है। उस आदमी का नाम लुइस मेसन था। जो ब्रिटिश फौज में एक सिपाही था। इस काम में लेकिन उसका मन नहीं था। उसे एक अजीब सा शोक था। वह पुराने सिक्के खोज-कोज कर जमा किया करता था। इसी धुन में शहर दर शहर भटकता रहता था। इसी अजीब शोक के चलते उसने 1827 में नौकरी छोड़ दी। वह पुराने शिक्कों की तलाश में साल 1829 में मोंटगॉमरी जा पहुंचा। जो अब पाकिस्तान के पंजाब का सहवाल जिला है।

यहां मेशन पुराने खंड़हरों में जब सिक्के खोज रहा था तो उसे एक ऐसे पुराने शहर के अवशेष दिखाई दिये जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। उसके बारे में स्थानीय लोगों ने भी कभी कुछ नहीं सुना था। मेसन खोज तो कुछ नहीं कर पाये लेकिन जितना वो उस जगह के बारे में समझ सके। उसे उन्होंने एक किताब में दर्ज कर दिया। यही किताब आगे चलकर सिंधु सभ्यता की खोझ के लिए पहली सीढ़ी बनी।

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया

भारत की बागडोर ब्रिटिश साशन ने जब अपने हाथों में ली तो उन्होंने बहुत से संस्थान बनाने शुरू किए। सन 1861 में ब्रिटिश सरकार ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ASI की शुरूवात की थी। इसके पहले डायरेक्टर के तौर पर एलेग्जेंडर कनिंघम को चुना गया। कनिंघम भी मेसन की तरह वैसे तो फौजी थे लेकिन आर्कयोलॉजी में उनकी रूचि भी जुनूनी थी।

कनिंघम ने मेसन की किताब पढ़ी तो हड़प्पा के बारे मे जानने के लिए निकल पड़ा। वहां जाकर उन्होंने खोज की तो वो उस नतीजे पर पहुंचे की यह सील भारत के बाहर से भारत में लायी गई थी। हडप्पा में मिले अवशेष उन्होंने एक हजार साल पुराने माने। साल 1904 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के नये डायरेक्टर जॉन मार्शल ने दया राम साहनी को हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की खुदाई काम काम सोंप दिया। उसमें कुछ दिनों बाद उन्होंने हड़प्पा और मोहन जोदड़ों को एक सभ्यता माना।

कितनी पुरानी है सिंधु सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता का इलाका मेहरगढ़ बलोचिस्तान माना जाता है। इतिहास कारों के मुताबिक इसका समय 7000 से 5500 ईसा पूर्व माना जाता है। इसमें जो चीजे मिली उसे नवपाषाण काल की माना जाता है। नव पाषाण मतलब वो समय जब इंनसान ने खेती करना शुरू कर दिया था। इस काल में छोटी-छोटी बस्तियों की शुरूवात हुई थी। करीब 3300 साल पहले लोग पहाड़ी इलाकों से मैदानों की तरफ आये। करीब 2600 ईसा पूर्व नगरों की शुरूवात हुई। इसी समय में लोगों ने कोठी बनाकर अनाज को जमा करने का काम शुरू किया। 2600 ईसा पूर्व से लेकर 1900 ईसा पूर्व को सिंधु घाटी सभय्ता का सुनहरा काल कहा गया है। सिंधु घाटी सभ्यता में लगभग 50 लांख लोग रहते थे। इनका इलाका 10 लांख वर्ग किलोमीटर में फैला था।

लोग क्या काम करते होंगे?

इस दौरान अनाज के अलावा अदरक, हल्दी, जीरा, लहसुन ये सब भी पैदा किया जाता था. इसके अलावा बर्तन बनाने का काम भी मुख्य रूप से किया जाता था. इस दौरान लोग ऊंट, भैंस, बकरी, कुत्ता बिल्ली पालते थे. और इस पशुधन का ट्रेड भी होता था. ट्रेड के लिए नदियों के अलावा समुंद्री रास्तों का भी उपयोग होता था सिंधु घाटी की खुदाई में आर्कियोलॉजिस्ट्स को हजारों सील मिली हैं. इन सील्स पर एक जानवर का चित्र और ऊपर कुछ निशान लिखे हैं। जिससे पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में एक विशेष लिपि का उपयोग होता था. लेकिन इस लिपि का मतलब क्या है, इसका पता अब तक नहीं चल पाया है. सिंधु घाटी सभ्यता में उपयोग होने वाली भाषा को डीकोड क्यों नहीं किया जा सका। 

कैसे ख़त्म हुई इतनी पुरानी सभ्यता?

इतिहासकारों की माने तो सिंधु घाटी सभ्यता 700 साल तक फली फूली। ऐसा माना जाता है कि 1900 से सिंधु घाटी सभ्यता का पतना होना शुरू हुआ। इस सभ्यता के कुल 1300 साल में सारे के सारे निशान ख़त्म हो गये। हालांकि यह सभय्ता क्यों ख़त्म हुई इसको लेकर अलग अलग थ्योरी हैं। किसी भी थ्योरी का आधार पर सच होने का दावा नहीं किया जा सकता है।

एक थ्योरी कहती है कि क्लाइमेट चेंज होने से नदियों का पानी कम हुआ। मानसून में कमी के चलते घग्गर-हाकरा नदी सूखने लगी होंगी। उपज कम हुई होगी। खाना पीना कम मिला होगा। आपस में कलह बढ़ी होगी। बिमारियां बढ़ी होंगी। इस सभ्यता के लोगों ने इस जगहको छोड़कर दूसरी जगह जाना मुनासिब समझा होगा। इस सभ्यता के लोग स्थान दूसरे स्थान पर चले गये होंगे।

दूसरी थ्योरी थोड़ी सी साइंटिफिक है। अब से करीब 2200 ईसा पूर्व धोलीवीरा में एक बड़े भूकंप के सुबूत मिलते हैं। इस वजह से ऐसा माना जाता है कि इन भूकंपों के चलते इस इलाके को छोड़ दिया होगा। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सिंधू सभ्यता एकदम से खत्म नहीं हुई होगी। इस सभय्ता से धीरे-धीरे लोग निकलना शुरू हुए होंगे। धीरे-धीरे लोग दूसरे शुरक्षित स्थानों पर जाकर बस गये होंगे। इस तरह यह पूरा इलाका खाली हो गया। 1300 ईसा पूर्व सिंधु सभ्यता पूरी तरह से खाली यानी ख़त्म हो गई होगी।

अब तक क्या क्या मिला?

सिंधु घाटी सभ्यता में जो भी कुछ मिला साबुत नहीं मिला है। उसकी कम से कम 1000 हाजर ज्यादा साइट खोदी जा चुकी हैं। इस सभ्यता में कुछ ईंटें, मिट्टी से बने बर्तन, एक नाचती स्त्री की मूर्ति, कांसे के बर्तन, सोने का एक हार जिस पर भारत पाकिस्तान के बंटवारे के समय पेंच फंसा था। इसके अलावा कुछ जानवरों के चित्र, खाने की चीजों के चित्र मिलें हैं, जिसके आधार पर माना जाता है कि इस सभ्यता में लोग खेती करने लगे थे।
सिंधु सभ्यता में मिले अवशेष

राजामोली बनाने चाहते थे फ़िल्म?

राजामोली की फ़िल्में देखकर महिंद्रा के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने राजामोली से सिंधु घाटी सभ्यता पर एक फ़िल्म बनाने का आग्रह किया। राजमोली इस फ़िल्म को बनाने के लिए खोज भी करने लगे। सिंधु घाटी सभ्यता का इलाका क्योंकि पाकिस्तान में आता है तो पाकिस्तान की अनुमति उन्हें नहीं मिली।

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